देहरादून। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) द्वारा चयनित 1371 सहायक अध्यापक इन दिनों अपनी नियुक्तियों को लेकर लगातार नौ दिनों से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं। देहरादून के ननूरखेड़ा स्थित माध्यमिक शिक्षा निदेशालय परिसर में चल रहा यह आंदोलन अब प्रशासनिक दखल और अभ्यर्थियों के उग्र तेवरों के कारण चर्चा में आ गया है।
शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बावजूद प्रशासन का दबाव
अभ्यर्थियों ने बताया कि वे शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से अपनी मांगें सरकार के समक्ष रख रहे हैं। इसके बावजूद, 24 अप्रैल को जब अभ्यर्थी पहलगाम आतंकी हमले में शहीदों को श्रद्धांजलि स्वरूप मौन रखे हुए थे, तभी निदेशालय के अधिकारियों और पुलिस बल ने धरना समाप्त कराने का प्रयास किया।
अभ्यर्थियों ने प्रशासन के इस रवैये की आलोचना करते हुए कहा कि वे धरना समाप्त नहीं करेंगे जब तक उनकी नियुक्ति नहीं की जाती। उनका कहना है कि शिक्षा विभाग की ओर से बार-बार दबाव डालना और जेल भेजने की धमकी देना दुर्भाग्यपूर्ण है।
नियुक्तियों पर रोक और न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति
बताया जा रहा है कि चयनित अभ्यर्थियों की नियुक्तियों पर फिलहाल न्यायालय द्वारा लगाए गए स्थगन (स्टे) के कारण रोक लगी हुई है। लेकिन अभ्यर्थियों का आरोप है कि सरकार न तो स्टे वेकेशन की अपील कर रही है, न ही अदालत में इस मामले को गंभीरता से लड़ रही है।
उन्होंने मांग की है कि सरकार महाधिवक्ता और चीफ स्टैंडिंग काउंसिल (CSC) के माध्यम से प्रभावशाली पैरवी करे और शीघ्र नियुक्ति प्रक्रिया को आगे बढ़ाए।
विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी
अभ्यर्थियों ने यह भी बताया कि राज्य के सुदूरवर्ती क्षेत्रों के स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है। एकल शिक्षक वाले विद्यालयों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे शिक्षा व्यवस्था चरमराने लगी है। कई स्कूलों में छात्र टीसी कटवाकर दूसरे जिलों में पलायन कर रहे हैं।
चयनित अभ्यर्थियों का कहना है कि वे बिना किसी शर्त के अति दुर्गम इलाकों में जाकर सेवा देने को तैयार हैं, लेकिन सरकार का उदासीन रवैया बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है।
धरने को मिला भावनात्मक रंग: परिसर में उठाया कूड़ा
प्रदर्शन के दौरान अभ्यर्थियों ने परिसर की सफाई करते हुए 1 क्विंटल से अधिक कूड़ा उठाया और एक अलग ही मिसाल पेश की। उनका कहना था कि वे केवल नौकरी की मांग नहीं कर रहे, बल्कि समाज के लिए कुछ सकारात्मक उदाहरण भी प्रस्तुत कर रहे हैं।
उनकी इस पहल की सोशल मीडिया पर भी काफी चर्चा हुई, लेकिन शासन-प्रशासन की ओर से अब तक कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है।
भूख हड़ताल और आमरण अनशन की चेतावनी
अभ्यर्थियों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही नियुक्ति से संबंधित प्रक्रिया शुरू नहीं की गई तो वे अपने परिवार के साथ भूख हड़ताल और आमरण अनशन शुरू करेंगे। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा हुआ तो इसके लिए पूरी तरह से उत्तराखंड सरकार और शिक्षा विभाग जिम्मेदार होंगे।
राज्यभर से जुटे अभ्यर्थी
धरने के नौवें दिन (24 अप्रैल) राज्य के सभी जिलों से चयनित अभ्यर्थी पहुंचे। पौड़ी के थलीसैंण से आरती, प्रदीप, शैलेन्द्र, टिहरी से शुचि, आदित्य, नवीन, मस्तराम पंवार, चमोली से पूजा, रीना, अनीशा, पिथौरागढ़ से अंजुली, सौम्या, मीना, रमेश, मोहित, चंपावत से ममता, सीमा, अल्पना, उत्तरकाशी से रिंकी, नीरज, नीलम, बागेश्वर से विनीत, ऋद्धि, शोभा, विनीता, रोशनी, पूनम समेत बड़ी संख्या में चयनित अभ्यर्थी धरने में शामिल हुए।
इन अभ्यर्थियों का कहना है कि वे भले ही पहाड़ों से आए हों, लेकिन उनका हौसला और संकल्प बहुत मजबूत है। वे जब तक न्याय नहीं पा जाते, तब तक संघर्ष करते रहेंगे।
सरकार की चुप्पी और अभ्यर्थियों का आक्रोश
जहां एक ओर अभ्यर्थी लगातार नई-नई पहल कर सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार की चुप्पी अभ्यर्थियों के आक्रोश को बढ़ा रही है। उनका मानना है कि सरकार शिक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रही है।
समाधान की आवश्यकता
राज्य में शिक्षकों की कमी और बेरोजगारी एक साथ खड़ी दो बड़ी समस्याएं हैं। यदि सरकार समय रहते नियुक्तियों पर ध्यान नहीं देती, तो यह स्थिति न केवल शिक्षा व्यवस्था को नुकसान पहुंचाएगी, बल्कि सामाजिक असंतोष को भी जन्म दे सकती है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है।