नई दिल्ली/मिर्जापुर/उन्नाव। संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की सिविल सेवा परीक्षा 2024 का परिणाम कई युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले की दो बहनों – सौम्या मिश्रा और सुमेघा मिश्रा – की सफलता की कहानी समाज में सरकारी शिक्षा की ताकत और परिवार के सहयोग की मिसाल पेश करती है। मिर्जापुर की वर्तमान एसडीएम सौम्या मिश्रा ने चौथे प्रयास में 18वीं रैंक प्राप्त कर टॉप 20 में जगह बनाई है, जबकि उनकी छोटी बहन सुमेघा ने दूसरे प्रयास में 253वीं रैंक हासिल की है।
पिता सरकारी शिक्षक, बेटियों को बनाया अफसर
सौम्या और सुमेघा मिश्रा मूल रूप से उन्नाव जिले की पूरवा तहसील के अजयपुर गांव की रहने वाली हैं। इनके पिता राघवेंद्र मिश्रा दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं, जबकि मां रेणु मिश्रा एक गृहिणी हैं। पिता ने दोनों बेटियों को हमेशा सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाया और उनमें बचपन से ही समाज सेवा का जज्बा पैदा किया।
सौम्या कहती हैं, “हमारे पिता ने कभी ये महसूस नहीं होने दिया कि हम किसी निजी स्कूल में नहीं पढ़ रहे हैं। उन्होंने हमें बचपन से ही यूपीएससी की परीक्षा के बारे में बताया और प्रेरित किया।”
सरकारी स्कूल से सफर शुरू, डीयू से स्नातक की पढ़ाई
दोनों बहनों ने दिल्ली के राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय से स्कूली शिक्षा प्राप्त की और इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज से भूगोल विषय में ऑनर्स किया। दोनों को पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया।
सौम्या को एमए में गोल्ड मेडल मिला, जबकि सुमेघा को भी स्नातक स्तर पर उनकी उपलब्धियों के लिए गोल्ड मेडल से नवाजा गया।
बिना कोचिंग, खुद की मेहनत और योजना से सफलता
दोनों बहनों ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि उन्होंने किसी भी प्रकार की कोचिंग नहीं ली। रोजाना सात से आठ घंटे की सुसंगठित पढ़ाई और निरंतर लेखन अभ्यास ही उनकी सफलता का आधार बना।
सुमेघा बताती हैं, “पहले दो प्रयासों में असफल रही, लेकिन हर बार कमियों की समीक्षा की और नए सिरे से शुरुआत की।”
वहीं, सौम्या ने बताया कि उन्होंने यूपीएससी के साथ-साथ उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPCS) की परीक्षा भी पास की थी और वर्तमान में मिर्जापुर में एसडीएम पद पर कार्यरत हैं।
मां मिर्जापुर में, पिता दिल्ली में: परिवार की भूमिका सबसे बड़ी
इस सफलता की खास बात यह रही कि जब सौम्या मिर्जापुर में एसडीएम के तौर पर कार्यरत थीं, तब मां रेणु मिश्रा मिर्जापुर में उनके साथ रहती थीं और वहीं पिता राघवेंद्र मिश्रा दिल्ली में छोटी बेटी सुमेघा की पढ़ाई की देखभाल कर रहे थे।
सौम्या कहती हैं, “मेरी मां ने नौकरी के दौरान मुझे भावनात्मक सहारा दिया, और पिता ने सुमेघा की तैयारी को हर दिन मार्गदर्शन दिया। हम दोनों के लिए उनका योगदान अमूल्य है।”
असफलता अंत नहीं होती, बस सीखने का मौका है
सौम्या और सुमेघा दोनों का मानना है कि असफलता से घबराने की जरूरत नहीं है। सौम्या कहती हैं, “पहले तीन प्रयासों में सफलता नहीं मिली, लेकिन हर बार मैंने अपनी गलतियों से सीखा।”
वहीं, सुमेघा ने युवाओं से अपील की कि किसी भी नकारात्मक सोच को खुद पर हावी न होने दें और निरंतर मेहनत करते रहें।
“सरकारी स्कूलों में पढ़कर भी अफसर बना जा सकता है”
आज जहां अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने को प्राथमिकता देते हैं, वहीं मिश्रा परिवार की यह कहानी एक प्रेरणास्पद उदाहरण बनकर उभरी है। दोनों बहनें कहती हैं कि सरकारी स्कूलों में पढ़कर भी कोई यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा पास कर सकता है, बशर्ते मार्गदर्शन सही हो और मेहनत ईमानदार।
समाज सेवा का सपना अब हकीकत
सौम्या मिश्रा का सपना बचपन से ही एक अधिकारी बनकर समाज और देश की सेवा करना था। अब, जब वह टॉप 20 में अपनी जगह बना चुकी हैं, तो उनका कहना है कि वह महिलाओं की शिक्षा और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में विशेष योगदान देना चाहती हैं।
सुमेघा ने भी कहा कि वह शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने की इच्छुक हैं और समाज के पिछड़े वर्गों तक योजनाओं की पहुंच सुनिश्चित करना चाहती हैं।
युवाओं के लिए प्रेरणा
इस कहानी से यह संदेश मिलता है कि मेहनत, धैर्य, पारिवारिक समर्थन और आत्मविश्वास के दम पर किसी भी ऊंचाई को छुआ जा सकता है। सौम्या और सुमेघा मिश्रा की सफलता न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश के युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो सरकारी संसाधनों से पढ़ाई कर भी बड़े सपने देख सकते हैं और उन्हें साकार कर सकते हैं।