परिचय: एक चिंताजनक तस्वीर
देहरादून जिले के विकासनगर क्षेत्र स्थित राजकीय इंटर कॉलेज (GIC) मेदनीपुर, बद्रीपुर में इस वर्ष का 12वीं कक्षा का परीक्षाफल बेहद चौंकाने वाला रहा। इस विद्यालय के 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले 22 छात्रों में से कोई भी छात्र परीक्षा पास नहीं कर सका। वहीं, 10वीं कक्षा में पढ़ने वाले 66 छात्रों में से 62 विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए हैं, जो लगभग 94 प्रतिशत का सफलता दर है। इस असमान परिणाम ने विद्यालय की व्यवस्था, विषय चयन और शिक्षा विभाग की नीतियों पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
सिर्फ विज्ञान विषय: छात्रों की मजबूरी बनी असफलता
विद्यालय प्रशासन का कहना है कि 12वीं कक्षा में केवल विज्ञान संकाय (पीसीएम – फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स) ही उपलब्ध है। इस कारण जिन छात्रों की रुचि कला या अन्य विषयों में थी, उन्हें भी मजबूरी में विज्ञान विषय पढ़ना पड़ा। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से आने वाले इन छात्रों के पास विद्यालय बदलने का विकल्प नहीं था, क्योंकि आस-पास के क्षेत्रों में अन्य विषय उपलब्ध कराने वाले विद्यालय बहुत दूर हैं।
छात्रों की पसंद और वास्तविकता में टकराव
छात्रों ने बताया कि वे मुख्यतः कला विषय पढ़ना चाहते थे। लेकिन विद्यालय में विकल्प न होने के कारण उन्होंने विज्ञान विषय चुना, जिसके लिए वे मानसिक रूप से तैयार नहीं थे और न ही उनकी पृष्ठभूमि इसकी अनुमति देती थी। ऐसे में परीक्षा में विफलता एक अनुमानित परिणाम बन गया।
2016 से जारी है कला संकाय की मांग
विद्यालय प्रबंधन ने बताया कि वर्ष 2016 से ही वे विद्यालय में कला संकाय प्रारंभ करने की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन शिक्षा विभाग से अब तक इसकी स्वीकृति नहीं मिली है। यह विद्यालय पूरे ब्लॉक में एकमात्र ऐसा संस्थान है जहाँ केवल विज्ञान विषय पढ़ाया जाता है। यदि समय रहते कला विषयों को शामिल कर लिया गया होता, तो शायद छात्रों का यह भविष्य अंधकारमय नहीं होता।
छात्र संख्या बनाए रखने के लिए समझौता
स्कूल प्रबंधन द्वारा यह भी बताया गया कि कई छात्रों ने 10वीं कक्षा के बाद विषय चयन के आधार पर अन्य विद्यालयों का रुख किया। लेकिन शेष छात्रों की संख्या शून्य न हो, इसके लिए उन्हें विज्ञान संकाय में प्रवेश दे दिया गया। इसका उद्देश्य केवल छात्र संख्या बनाए रखना था, न कि उनकी रुचि और क्षमता के अनुसार शिक्षा देना।
शिक्षा विभाग की प्रतिक्रिया
जैसे ही 12वीं के परिणाम शून्य रहने की खबर शिक्षा विभाग तक पहुंची, अधिकारियों में हलचल मच गई। मुख्य शिक्षा अधिकारी विनोद कुमार ढौंडियाल ने बताया कि जिन स्कूलों के परिणाम खराब रहे हैं, उन्हें नोटिस भेजा जाएगा। उन्होंने माना कि मेदनीपुर विद्यालय में केवल विज्ञान विषय उपलब्ध है और इस कारण कमजोर छात्र भी यही विषय पढ़ने को मजबूर हैं।
समाधान की ओर पहला कदम
मुख्य शिक्षा अधिकारी ने यह भी कहा कि विद्यालय में कला विषय शुरू करने के लिए प्रस्ताव तैयार कर विभाग को भेजा जाएगा। यदि यह प्रस्ताव पास होता है, तो भविष्य में छात्रों को उनकी रुचि के अनुसार विषय चुनने की स्वतंत्रता मिलेगी और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो सकेगा।
एक बड़ा सवाल: क्या शिक्षा सबके लिए समान है?
इस घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या शिक्षा व्यवस्था वाकई सभी के लिए समान और सुलभ है? जब एक सरकारी स्कूल में छात्र अपनी इच्छानुसार विषय तक नहीं चुन सकते और उन्हें जबरदस्ती किसी कठिन विषय में डाल दिया जाता है, तो ऐसी प्रणाली को समावेशी या न्यायसंगत कैसे कहा जा सकता है?
केवल आंकड़ों से नहीं चलता भविष्य
राजकीय इंटर कॉलेज मेदनीपुर का यह मामला इस बात की मिसाल है कि शिक्षा केवल स्कूल खोलने या पास प्रतिशत बढ़ाने से नहीं सुधरती। जब तक छात्रों की रुचियों, क्षमताओं और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम और संसाधनों की व्यवस्था नहीं की जाती, तब तक “सबको शिक्षा” का सपना अधूरा रहेगा। शिक्षा विभाग को चाहिए कि वह केवल परिणामों के आधार पर कार्रवाई न कर, जमीनी स्तर की समस्याओं को समझे और नीतियों में आवश्यक सुधार करे।