हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 5 मई तक नोटिस दाखिल करने का निर्देश दिया
पौड़ी गढ़वाल जिले के कालागढ़ बांध क्षेत्र में दशकों से निवास कर रहे 213 परिवारों को अब अपना घर छोड़ना होगा। नैनीताल हाईकोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार को सख्त निर्देश देते हुए 5 मई तक विस्थापन की विस्तृत योजना पेश करने को कहा है। यह आदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।
वन और सिंचाई विभाग की अतिक्रमित भूमि पर बस गए परिवार
यह पूरा मामला उस भूमि से जुड़ा है जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने 1960 के दशक में सिंचाई विभाग को सौंपा था। कालागढ़ बांध निर्माण के लिए वन विभाग से अधिग्रहित हजारों हेक्टेयर भूमि का उपयोग हुआ था। बांध निर्माण के बाद कुछ भूमि वापस कर दी गई, लेकिन उसमें से काफी भूमि पर पूर्व कर्मचारी और उनके परिवारों ने धीरे-धीरे अतिक्रमण कर लिया। अब वही भूमि विवाद का कारण बन गई है।
213 परिवार दशकों से रह रहे हैं बांध क्षेत्र में
राज्य सरकार द्वारा अदालत को बताया गया कि कालागढ़ बांध क्षेत्र में वर्तमान में 213 परिवार रह रहे हैं, जो लंबे समय से इस जमीन पर अवैध रूप से बसे हुए हैं। इन परिवारों को पहले ही जिला प्रशासन की ओर से नोटिस जारी किए जा चुके हैं, लेकिन अब कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए विस्थापन की स्पष्ट योजना मांगी है।
उत्तर प्रदेश ने पुनर्वास से झाड़ा पल्ला
कोर्ट को बताया गया कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों के अधिकारियों के बीच इस मुद्दे पर बैठक हुई थी। बैठक में उत्तर प्रदेश ने यह स्पष्ट कर दिया कि अवैध अतिक्रमणकारियों के पुनर्वास के लिए उनके पास कोई नीति नहीं है। चूंकि जमीन उत्तराखंड क्षेत्र में आती है, इसलिए उत्तराखंड सरकार को ही इसकी जिम्मेदारी निभानी होगी।
पूर्व में भी मिला था समय, लेकिन नहीं बनी योजना
इससे पहले हाईकोर्ट ने दोनों राज्यों को 28 अप्रैल तक योजना बनाकर पेश करने को कहा था। लेकिन बैठक और वार्ता के बावजूद कोई ठोस योजना सामने नहीं आई। अब कोर्ट ने राज्य सरकार को अंतिम अवसर देते हुए 5 मई तक विस्तृत नोटिस दाखिल करने का आदेश दिया है।
स्थानीय लोगों की चिंता – कहां जाएंगे इतने वर्षों बाद?
इस आदेश के बाद कालागढ़ बांध क्षेत्र में रहने वाले लोगों के बीच चिंता और असमंजस का माहौल है। कई परिवार ऐसे हैं जो 30 से 40 वर्षों से यहां रह रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होंने यहां घर बनाए, बच्चे पाले और अब अचानक उन्हें यहां से हटाने की बात हो रही है। सरकार की ओर से अभी तक उन्हें वैकल्पिक व्यवस्था के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है।
प्रशासन की दलील – अतिक्रमण अवैध है, हटाना जरूरी
प्रशासन का तर्क है कि यह अतिक्रमण पूरी तरह अवैध है और अगर इसे समय पर नहीं हटाया गया तो यह भविष्य में और बड़ी समस्या बन सकता है। पर्यावरणीय और कानूनी दृष्टिकोण से भी यह ज़रूरी है कि बांध जैसे संवेदनशील क्षेत्र से अवैध बस्तियों को हटाया जाए।
वन और बिजली विभाग की भूमिका
हाईकोर्ट के समक्ष उत्तराखंड सरकार की ओर से प्रधान स्थायी अधिवक्ता सी.एस. रावत ने कहा कि बांध क्षेत्र में अतिक्रमण मुख्यतः वन विभाग और बिजली विभाग की भूमि पर हुआ है। इसलिए इन दोनों विभागों को मिलकर विस्थापन और पुनर्वास की योजना बनानी होगी।
क्या है अगला कदम?
5 मई को उत्तराखंड सरकार को हाईकोर्ट में यह बताना होगा कि 213 परिवारों को किस तरीके से हटाया जाएगा और उनके लिए क्या वैकल्पिक व्यवस्था की जाएगी। कोर्ट की नजर अब इस बात पर टिकी है कि क्या सरकार केवल हटाने तक सीमित रहेगी या विस्थापितों के पुनर्वास के लिए भी कोई मानवीय योजना सामने लाएगी।
विस्थापन की प्रक्रिया में पारदर्शिता की मांग
स्थानीय सामाजिक संगठनों और जनप्रतिनिधियों ने सरकार से अपील की है कि विस्थापन की प्रक्रिया में पारदर्शिता होनी चाहिए। किसी भी परिवार को बिना उचित वैकल्पिक स्थान दिए नहीं हटाया जाना चाहिए। साथ ही, इस बात की भी मांग की जा रही है कि विस्थापितों के बच्चों की शिक्षा और रोज़गार के लिए विशेष योजनाएं बनाई जाएं।
न्यायालय की सक्रियता से तेजी आई प्रक्रिया में
हाईकोर्ट की सक्रियता से अब इस लंबे समय से लटके मामले में कुछ गति आई है। वर्षों से अतिक्रमण के मुद्दे को लेकर चली आ रही खींचतान अब निर्णायक मोड़ पर है। यह देखना दिलचस्प होगा कि उत्तराखंड सरकार 5 मई तक कोर्ट की अपेक्षाओं पर कितना खरा उतरती है
कालागढ़ बांध क्षेत्र में अवैध रूप से बसे 213 परिवारों को हटाने का मामला अब निर्णायक स्थिति में पहुंच चुका है। हाईकोर्ट का रुख स्पष्ट है – अवैध अतिक्रमण को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अब सरकार की जिम्मेदारी है कि वह विस्थापन को मानवीय दृष्टिकोण से देखे और प्रभावित परिवारों के लिए उचित पुनर्वास योजना तैयार करे।